Health Advice: आज के समय में कर कोई स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहा है जिसके कारण समय के साथ-साथ बीमारियां भी मॉर्डन होती जा रही हैं। जीवन से जुड़ी कई बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं। आइए जानते है इन बीमारियो के बारे में।
Dainik Haryana News, Health News(New Delhi): जिसका कारण है तकनीक का गलत प्रयोग है। आज हम आप को ऐसी ही बीमारियों के बारे में बताएंगे जिनका शायद आप ने नाम भी नही सुना होगा। नया साल पर आप इन बीमारियों को दूर करने के लिए खुद से वादा ो सकते है आइए जानते है इन बीमारियो के बारे में।
टेक्स्ट नेक भूल जाएं:
इनल सर्जन्स की मानें तो अपने स्मार्टफोन पर पोस्ट को देखते और स्क्रॉल करते समय में अपने सिर आपने सिर और गर्दन को झुकाकर रखने के कारण से गर्दन पर बहुत प्रेशर पड़ता है। अधिक समय तक ऐसा ही होने से गर्दन की मांसपेशियों में सूजन और जलन हाने अगती है और इसी कंडिशन को टेक्स्ट नेक कहते हैं।
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रिसर्चर्स की मानें तो इस बिहेवियर के कारण से स्कल के बेस के पास हड्डी का एक्सट्रा लंप भी बन रहा है। बचाव के लिए एक्सपटर््स कहते हैं कि हमें फोन को आई लेवल पर रखकर ही देखना चाहिए
नोमोफोबिया से पाएं निजात:
साल 2018 में नोमोफोबिया को कैम्ब्रिज डिक्शनरी के वर्ड ऑफ द ईयर के तौर पर स्वीकार किया गया था। यह एक ऐसी परिस्थिति है जो लंबे समय तक मोबाइल यूज न करने पर उत्पन्न होती है। एक सर्वे के मुताबिक करीब 53 प्रतिशत लोग मोबाइल फोन यूज न करने पर बेचैन होने लगते हैं और एक्सट्रीम कंडीशन में उन्हें पैनिक अटैक भी आ सकता है। गुरुग्राम स्थित नारायणा हॉस्पिटल में कंसलटेंट साइकैटरिस्ट एंड साइकोथैरेपिस्ट डॉ. राहुल कक्कड़ बताते हैं, किसी भी फोबिया के लिए एक बिहेवियर थैरेपी होती है, जिसमें आपके अंदर से डर को खत्म करने के लिए उसी चीज के पास लाया जाता है। ऐसी ही बिहेवियर थैरेपी नोमोफोबिया के लिए यूज किया जाता है। ऐसा पीड़ित के अंदर के डर को खत्म करने के लिए किया जाता है।
गेमिंग डियआॅर्डर:
विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने दुनिया•ार में हद से अधिक आॅनलाइन गेमिंग खेलने को भी एक मापसिक बीमारी के रूप में माना है। गमिंग डियआॅर्डर से पीड़ित अधिक लोग अपने हर दिन के काम से ज्यादा विडयो और गेम को सूमय देता है। इस बीमारी के लक्षणों की बाते करे तो इसमें नींद नही आती और वह अपने सामाजिक जीवन को भी नजरअंदाज करने लगता है। गेम खेलने वाले करीब 10 प्रतिशत लोग गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित होते हैं। श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट कंसलटेंट साइकोलॉजिस्ट डॉ. पल्लवी जोशी बताती हैं, गेमिंग डिसऑर्डर नशे की तरह है और इसका इलाज भी कुछ नशे को छुड़ाने जैसा ही है, जो कि इसकी जड़ पर जाकर किया जाता है। इस बारे में डॉक्टर बताते हैं कि इसमें पीड़ित को स्मार्टफोन या तकनीक से दूर रखा जाता है। उन्हें दवाइयां भी दी जाती हैं। इसमें पीड़ित को फायदा 6 से 12 महीने में नजर आता है। अधिक प्रभावी उपचार के लिए दवा के साथ साथ अनेक अन्य तकनीकों को मिलाकर नशा दूर करने पर जोर दिया जाता है जैसे फैमिली थेरेपी, गाइडेंस, वाटर थेरेपी, मडबाथ, ग्रुप इन्वॉलमेंट आदि जो अलग-अलग समय पर बहुत प्रभावी होते है।
स्मार्टफोन थम्ब:
इस बारे में नई दिल्ली स्थित धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में डायरेक्टर एंड सीनियर कंसल्टेंट डॉ. बीएस मूर्ति बताते हैं कि स्मार्टफोन के अधिक प्रयोग के कारण हाथों और उंगलियों में होने वाली समस्याओं से बचाव के लिए सबसे पहले जरूरी है कि लगातार स्मार्टफोन का प्रयोग ना करें। थोड़े समय के अंतराल पर स्मार्टफोन प्रयोग से ब्रेक लेते रहें और बीच-बीच में उंगलियों को स्ट्रेच करते रहें। इसके लिए उंगलियों को पूरी तरह खोलकर मुट्ठी बंद करें। सूजन आने पर बर्फ से सिकाई करें, दर्द से राहत के लिए गर्म सिकाई या हीटिंग पैड का भी प्रयोग कर सकते हैं। थोड़ी देर हाथों को आराम दे सकते हैं। इसके अलावा अगर समस्या क्रॉनिक हो जाए तो खुद इलाज करने के बजाय आपको इस मामले में डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
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