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Vastu Tips: शनिदेव के प्रकोप से बचना है, तो शनिवार को करें ये छोटा सा काम

 
Vastu Tips: शनिदेव के प्रकोप से बचना है, तो शनिवार को करें ये छोटा सा काम
Dainik Haryana News: भारत देश देवी देवताओं का देश है । यहां के लोगों की सर्दा, आस्था देवी, देवताओं पर टीकी है। सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है ।     इनमें से शनिवार का दिन शनिदेव (Sani Dev)  का दिन माना जाता है । शनिदेव को कर्म फल दाता भी कहा जाता है । शनिदेव कर्म के हिसाब से फल देते हैं । अच्छे को अच्छा बुरे को बुरा ।   Read Also: Ladli Laxmi Yojana : लाडली लक्ष्मी योजना को लेकर आया बड़ा अपडेट, मिल रहे 25 हजार रूपये   शनिदेव के प्रकोप से मानव ही नही देवी, देवता भी कांपते हैं । एसे में शनिदेव के प्रकोप से बचना है, तो ज्योतिष शास्त्र ने कुछ उपाय बताऐ हैं ।     आइए जानें कौनसे हैं, वो उपाय ।   Read Also: Sapna Choudhary Dance video: नीला सूट पहन किया डांस, फैंस के दिलों पर चलाई छुरियां   यदि शनिदेव के प्रकोप से बचना है ।तो शनि स्त्रोत का जाप करना चाहिए । राजा दशरथ ने भी आकाल के समय शनि स्त्रोत का जाप किया था। जिससे शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए ।     और राजा दशरथ की हर मनोकामना को पुरा किया ।अगर आप भी शनिदेव के स्त्रोत का पाठ करते हैं । तो शनिदेव आप पर करिपा बनाए रखेंगे । शनिदेव के संसकृति में मिलेंगे ।     इस प्रकार हैं शनिदेव के स्त्रोत   Read More: Cricket News: तीसरे टेस्ट मैच को लेकर बड़ी अपडेट, नही खेला जाएगा IND VS AUS के बीच तीसरा टेस्ट!   नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निनमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।   भाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।   नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।   तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।। अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते। नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।   देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।। ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।   त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।। प्रसाद कुरु मे सौरे वारदो भव भास्करे।एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रह