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5 Rivers : दुनिया की एकमात्र जगह, जहां एक साथ 5 नदियों का होता है संगम

 
5 Rivers : दुनिया की एकमात्र जगह, जहां एक साथ 5 नदियों का होता है संगम
Latest News : भारत देश में नदियों की पूजा की जाती है और मां का दर्जा दिया जाता है। बहुत सी ऐसी नदियां हैं जहां पर पूजा के लिए लोगों की भीड़ जमा होती है। आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जहां पर पांच नदियां एक साथ मिलती है। आइए खबर में जानते हैं कौन सी है वो जगह। Dainik Haryana News :#5 Rivers(नई दिल्ली) : भारत में बहने वाली नदियां लाखों करोड़ों लोगों को पीने का पानी देती हैं और खेतों में सिंचाई के भी काम आती है। भारत में बहुत सी नदियां बहती हैं जिनकी पूजा की जाती है और भारत को नदियों का देश भी कहा जाता है। यहां की नदियां एक बिंदु से शुरू होकर दूसरी नदि में मिल जाती हैं। जैसे प्रयागराज में गंगा, सरस्वती और यमुना( Ganges, Saraswati and Yamuna) का मिलन होता है। तो चलिए आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जो पूरी दुनिया में केवल भारत में ही है जहां पर एक साथ पांच नदियों का मिलन होता है। यहां पर हर साल स्रान करने के लिए हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। READ ALSO :Haryana : हरियाणा की इन बेटियों को सरकार दे रही फ्री में बस सेवा दरअसल, जिस जगह की हम बात कर रहे हैं वो यूपी के इटावा और जालौन की सीमा के पास बताई जा रही है। इस जगह को पंचनद भी कहा जाता है जहां पर पांच नदियों का संगम होता है। यह प्रकृति से मिला एक अनोखा उपहार है पूरी दुनिया में यह एकमात्र जगह है जहां पर पांच नदियों का संगम होता है।

जानें कौन सी हैं नदियां :

यहां पर कुंवारी, चंबल, सिंध, यमुना और पहज नदियों( Kunwari, Chambal, Sindh, Yamuna and Pahaj rivers) का संगम होता है। इस जगह को बहुत से लोग महातीर्थराज( mahatirthraj) भी कहा जाता है। शाम के समय में वहां पर लाइटों की वजह से नदियां और भी खूबसूरत होती है। READ MORE :Taj Mahal: क्या सच में शाहजहाँ ने कटवा दिए थे ताजमहल बनाने वालों के हाथ

बनती हैं ये कहानियां :

यहां पर बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं माना जाता है कि महाभारत काल में भ्रमण के दौरान पांडव पंचनद के पास रूके थे और वहीं पर रूक कर भीम ने बकासुर का वध भी किया था। दूसरी कहानी ये है कि तुलसीदास ने महर्षि मुचकुंद की परीक्षा लेने के लि पंचनद की पदयात्रा शुरू करी थी। वहां पहुंचकर तुलसीदास जी ने पानी पिलाने का आग्रह किया, जिस पर महर्षि मुचकुंद ने अपने कमंडल से जल छोड़ा. कहते हैं कि कमंडल से गिरा वह जल कभी खत्म नहीं हुआ.