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World Health Organization : बुजुर्गों के लिए सरकार ले रही ये बड़ा फैसला!

 
Dainik Haryana News :#Abuse Awareness Day (नई दिल्ली):  आज के आधुनिक युग में समाज तेजी से बदल रहा है, लोग बड़े परिवार से छोटे-छोटे परिवार में विभक्त हो रहे है। युवा पीढ़ी को अपने मॉडर्न सोच पर गर्व महसूस होता है, वे अलग रहना पसंद करने लगे है, लोगों को अपना व्यक्तिगत स्वतंत्र स्थान चाहिए। बाहर पढ़ने जाना है, नौकरी करने जाना है, करियर को बुलंदी पर ले जाना है।   आजकल व्यक्ति बड़ा होने के बाद अपने भूतकाल, वर्तमान को भूलकर अपने भविष्य के लिए जीना पसंद कर रहा है अर्थात अपने बुजुर्ग माता-पिता द्वारा किये गए त्याग, समर्पण, संघर्ष और कार्य को भूलकर सिर्फ अपने खुद के भविष्य और अपने बच्चों के लिए विचार करने लगा है, परन्तु जिस वजह से वह इतना काबिल जिम्मेदार बना है उसे वह भूल रहा है, तो फिर ऐसे परिस्थिति में घर के उन बुजुर्गों की जिम्मेदारी किसके भरोसे छोड़ रहे है। READ ALSO : Relationship Tips : पत्नी से जब भी पति मांगे ये 3 चीज, पत्नी को नहीं करना चाहिए इंकार बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के बढ़ते मामलों को उजागर करने और इसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जागरूकता स्वरुप “विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस” ( Abuse Awareness Day)प्रत्येक वर्ष 15 जून को मनाया जाता है। इस वर्ष 2023 की थीम "सर्किल बंद करना : वृद्धावस्था नीति में लिंग आधारित हिंसा, कानून और साक्ष्य आधारित प्रतिक्रियाओं को संबोधित करना" यह है। विश्व स्वास्थ्य संगठन(World Health Organization) अनुसार, 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के 6 में से लगभग 1 व्यक्ति ने दुर्व्यवहार का अनुभव किया है। दीर्घकालिक देखभाल सुविधाओं जैसे संस्थानों में वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार की दर अधिक है। कोरोना महामारी के दौरान वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार की दर में वृद्धि हुई है। वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार से गंभीर शारीरिक चोटें और दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक परिणाम हो सकते हैं। वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार बढ़ने की भविष्यवाणी की गई है क्योंकि कई देशों में तेजी से उम्र बढ़ने वाली आबादी का सामना करना पड़ रहा है। READ MORE : Kisan News : किसानों ने MSP के लिए उठाई आवाज तो पुलिस ने बरसाई लाठियां 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों की वैश्विक जनसंख्या 2015 में 90 करोड़ से बढ़कर 2050 में लगभग 200 करोड़ हो जाएगी। हेल्प एज इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के तकरीबन 82% बुजुर्ग अपने परिवारों के साथ रहते है, लेकिन वे अक्सर मौखिक दुर्व्यवहार, उपेक्षा और शारीरिक हिंसा का शिकार होते है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि 35% बुजुर्गों ने अपने बेटों द्वारा दुर्व्यवहार का सामना किया और 21% ने अपनी बहुओं द्वारा दुर्व्यवहार की सूचना दी है। एजवेल फाउंडेशन ने इस विषय पर अपने अध्ययन में पाया कि 73% वृद्ध लोगों ने लॉकडाउन के दौरान अपने घरों में विभिन्न प्रकार के दुर्व्यवहारों को सहन करने की सूचना दी। आज समाज में हर तरफ बुजुर्गों के प्रति बढ़ते दुर्व्यवहार की खबरें देखने-सुनने मिलती है, जो समय के साथ तेजी से बढ़ कर अमानवीय स्तर पर जा पहुंची है। सोशल मीडिया पर भी इस विषय से संबंधित वीडियो खूब वायरल होते रहते है। बुजुर्गों से दुर्व्यवहार अर्थात उन्हें जीते जी नर्क यातना देने जैसा है और बहुत शर्म की बात है कि यह यातनाएं उन्हें उनके अपने लोग दे रहे है। आज समाज में वह भी संपन्न वर्ग है जो बड़े शहरों या विदेश में जाकर बैठा है और उनके माँ-बाप यहाँ उनके आने की राह देखते हुए जिंदगी से विदा लेते हुए प्राण त्याग देते है फिर भी उनके बच्चे अंतिम संस्कार में भी नहीं आना चाहते है। धन दौलत प्राप्त करने के लिए, काम करवाने या उनकी सेवा न करनी पड़े इसके लिए बुजुर्गों पर अत्याचार किया जाता है। जो बच्चे अपने बुजुर्गों से दुर्व्यवहार कर सड़कों पर भिखारी की तरह या वृद्धाश्रम में लावारिस की तरह छोड़ देते है, अगर यही काम बुजुर्गों ने भी अपनी जवानी में अपने इन बच्चों को अनाथाश्रम या सड़क पर छोड़ा होता तो शायद वो आज ऐसे बुरे दिन नहीं देखते। बुजुर्गों पर बढ़ते दुर्व्यवहार के लिए आधुनिक जीवनशैली और संस्कारहीन समाज जिम्मेदार है। आधुनिक हमारे विचार होने चाहिए संस्कार नहीं। बड़े अपने बच्चों के सामने बुजुर्ग से दुर्व्यवहार करते है फिर बच्चे बड़ों का अनुकरण करते हुए अपने माँ-बाप से वैसा ही दुर्व्यवहार करते है और ऐसा ही सिलसिला चल पड़ता है। समाज में अच्छाई दिखानेवाले बड़े-बड़े लोग भी अपने घर में बुजुर्गो से गलत व्यवहार करते नजर आते है। READ ALSO : Bajaj Housing Finance ने होम लोन की अवधि 40 साल तक बढ़ाई; और पेश कर रहे हैं इस उद्योग की सबसे कम ईएमआई बुजुर्गों को सबसे ज्यादा अपनों के सहारे की जरूरत इसी उम्र में पड़ती है और यही वक्त है हमें उनका मजबूत सहारा बनकर उनके साथ रहने का। पहले मां-बाप बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करते है, फिर बच्चे बड़े होकर उन बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करते है, यही संस्कार और जीवन का नियम है। जितना लगाव माँ-बाप का अपने बच्चों के लिए रहता है, उतना ही लगाव हमें अपने बुजुर्गों से होना ही चाहिए। समय और मतलब निकल जाने के बाद अपनों से बदलता व्यवहार इंसान का नहीं होता।   माँ-बाप से एक विनती है कि वे अपनों के प्रति या बच्चों के प्रति अँधा प्रेम ना करें अन्यथा यह आपको मुश्किल में डाल सकता है। बच्चों का भविष्य बनाने के चक्कर में इतना न खो जाये कि खुद के भविष्य को भी दांव पर लगाना पड़े अर्थात समय और व्यवहार की स्थिति को भांपते हुए जीवन में निर्णय लें, क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि बच्चों के लिए माँ-बाप खुद को भी बर्बाद कर उन्हें सवांरते है और अगले ही पल वही बच्चें माँ-बाप को घर से अलग कर वृद्धाश्रम में भेज देते है। बुजुर्गों के लिए ऐसा व्यवहार लगातार बढ़ रहा है, इसलिए अब समाज में वृद्धाश्रम की संख्या भी बहुत बढ़ रही है।