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Business Tips: जानें ऐसे अमीर नाई की कहानी, जिसके पास है 400 कारें

Ramesh Babu Success Story: आज हम आप को एक ऐसी सफलता की कहानी बताने जा रहे है जो हर किसी के लिए एक सिख है, आज हम आप को एक गरीब परिवार में जन्में रमेश बाबू का सफलता की कहानी के बताएंगे आइए जानते हैं इसके बारे में पूरी खबर।
 
Business Tips: जानें ऐसे अमीर नाई की कहानी, जिसके पास है 400 कारें

Dainik Haryana News,Success Story (New Delhi):बेंगलुरू के रहने वाले रमेश बाबू भारत के सबसे अमीर नाई हैं। उनके पास में 400 कारें हैं और वह कई सौ करोड़ के मालिक हैं। लेकिन अब भी उन्होंने बाल काटना नहीं छोड़ा है और वे अपने सैलून पर अब भी काम करते हैं।

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रमेश बाबू आज भले ही लग्जरी लाईफ जीते हैं लेकिन उनका जीवन बहुत ही गरीबी में बीता था। रमेश बाबू के सिर से पिता का साया  बहुत जल्दी उठ गया था। उनके पिता एक सैलून चलाते थे। पिता की मौत के बाद उनके घर दो वक्त चूल्हा भी नहीं चलता था।


रमेश बाबू की मां लोगों के घरों में नौकरानी का काम करती थी. एक समय उनके घर की हालत ये थी कि उन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. 13 साल की उम्र में रमेश बाबू ने सड़क पर अखबार बेचना शुरू किया. साथ ही उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. पिता का सैलून उनके चाचा संभाल रहे थे. लेकिन, उससे उनको ज्यादा कमाई नहीं हो रही थी।


संभाला पिता का सैलून(Took Over Father's Salon)


18 साल की उम्र में रमेश बाबू ने चाचा से अपना सैलून वापस ले लिया. उन्होंने उसे रेनोवेट किया और दो कारीगर रखकर खुद उसे संभालने लगे. समस्या यह थी कि कारीगर टाइम पर नहीं आते थे। इससे उनका धंधा खराब हो रहा था. रमेश बाबू को बाल काटने नहीं आते थे. लेकिन, एक दिन एक ग्राहक ने जिद करके रमेश बाबू से अपने बाल कटवाए. तब रमेश बाबू को अपने बाल काटने के हुनर(hair cutting skills)  का पता चला और वे मन लगाकर काम में जुट गए।


रॉल्स रॉयस से लेकर मर्सिडिज़ तक(From Rolls Royce to Mercedes)


आज कार रेंटल बिजनेस (car rental business)  के रमेश बाबू बड़े खिलाड़ी हैं. वे आज रॉल्स रॉयस, मर्सिडिज़ बेंज़, इटह, BMW, Audi,   जैगुआर जैसी लग्जरी गाड़ियां रेंट पर देते हैं. वो कहते हैं कि आप किसी भी लग्जरी ब्रांड के कारों का नाम लीजिए, वो उनके पास है. रमेश बाबू ने करोड़ों का बिजनेस होने के बाद भी अपने सैलून पर कटिंग करना नहीं छोड़ा है।


एक गाड़ी ने बदली जीवन की दिशा(A Car Changed the Direction of Life)


रमेश बाबू के सैलून का काम अच्छा चल पड़ा। कुछ पैसे हाथ में आए तो उन्होंने साल 1993 में उन्हें एक मारूति ओम्नी कार किस्तों पर ले ली। लेकिन कुछ समय के बाद वह पैसे की तंगी की वजह से वे किस्त नहीं भर पाए। रमेश बाबू की मां जिस घर में काम करती थी, उस घर की मालकिन  ने रमेश को कार को किराये पर चलाने की सलाह दी। रमेश बाबू  के यह सलह वरदान बन गई। रमेश के लिए ये सलाह वरदान बन गई. उन्होंने कार किराये पर चलानी शुरू की तो पता चला कि बेंगलुरु में रेंटल कार बिजनेस में अपार संभावनाएं हैं।
 

अब बेड़े में 400 कारें(Now 400 cars in the fleet)


रमेश बाबू ने कुछ समय तक स्वयं कार चलाने के बाद कुछ काने की सोचा। रमेश बाबू पूरी तरह से कार रेंटल बिजनेस में उतरना चाहते थे। उन्हें पता चला कि बेंगुलुरू में इस बिजनेस की बहुत अधिक संभावनाएं हैं, लेकिन उन्हें कुछ हटकर करना होगा।

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रमेश बाबू ने धीरे से कारों कर संख्या को बढ़ानी शुरू कर दी। रमेश बाबू का बिजनेस अच्छा चल पडा तो उन्होंने लग्जरी कारें खरीदनी शुरू किया। अब उनके पास में 400 कारें हैं, जिनमें से 120 लग्जरी कारें हैं।