Viral News : हूतियों के विद्रोह के खिलाफ एक देश से साथ देने से मना कर दिया है जिसके बाद अमेरिका को तगड़ा झटका लगा है। हूती विद्रोहियों के हमलों से लाल सागर की रक्षा के लिए बनाए गए अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों में शामिल होने से मना कर दिया है।
Dainik Haryana News,Saudi Arabia Not Joining Red Sea(नई दिल्ली): घरेलू सुरक्षा को ज्यादा ध्यान ना देते हुए आर्थिक विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए। मध्य पूर्व में सऊदी अरब कभी अमेरिका का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी हुआ करता था। लेकिन ट्रंप और बाइडन प्रशासन में विदेश नीति बदलने के कारण वह दूर चला गया है।
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अमेरिका और सऊदी अधिकारिकयों की तरफ से जानकारी दी जा रही है कि सऊदी अरब अपनी दक्षिणी सीमा पर शांति की ज्यादा संभावना जताई जा रही है। इसका प्रमुख कारण हूती विद्रोहियों के खिलाफ सऊदी की आठ साल की लड़ाई भी है। इस लड़ाई में सऊदी अरब को भारी आर्थिक नुकसान हुआ और पड़ोसी यमन गंभीर मानवीय संकट में फंस गया। इसी वजह से सऊदी अरब फिर से उस लड़ाई में पड़ना नहीं चाहता है और जिससे किसी भी बड़ी मुश्किल से बाहर निकल सकता है। सऊदी अरब के यमन में फंसने का कारण भी अमेरिका ही था, जिसने अचानक अपना समर्थन वापस ले लिया था। यमन 2014 से सरकारी बलों और हौथी विद्रोहियों के बीच सशस्त्र संघर्ष में घिरा हुआ है। मार्च 2015 में स्थिति और खराब हो गई, जब सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमनी सरकार के सहयोग से हमले करना शुरू कर दिया। शुरुआत हवाई हमले से हुई। बाद में सऊदी ने जमीनी और समुद्र के जरिए भी हमले को बढ़ाया। इसके जवाब में हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब में जमकर मिसाइलें दागीं और ड्रोन हमले किए। इन हमलों की वजह से सऊदी अरब को भारी नुकसान भी उठाना पड़ा है।
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Saudi Crown Prince Mohammed bin Salman Al Saudi) 2023 तक अपने देश में एक बड़े व्यापारिक केंद्र के तौर पर बदलना चाहते हैं और उनका लक्ष्य मध्य पूर्व के संघर्षों को हल करना और तनाव को शांत करना है। सभी देशों के साथ मिलझूलकर रहने की कोशिश में है, उन्होंने चीन की मध्यस्थता में अपने कट्टर दुश्मन ईरान की और भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।