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Supreme Court Rules : पुश्तैनी जमीन और मकान मालिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए नए नियम

 
Supreme Court Rules : पुश्तैनी जमीन और मकान मालिकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए नए नियम

Supreme Court Decision : अगर आप भी किसी पुश्तैनी जमीन के मालिक हैं या मकान के मालिक हैं तो ये खबर आपके काम की है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निमयों में बदलाव कर दिया गया है जिसके बारे में आपको जानकारी होनी जरूरी है। तो चलिए खबर में जानते हैं इसके बारे में।

Dainik Haryana News,Property Ownership Rights(ब्यूरो): रेवेन्यू रिकॉर्ड में दाखिल हुआ हो या नहीं, इससे उसके मालिकाना हक में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उस संपत्ति पर मालिकाना का फैसला सक्षम सिविल कोर्ट की ओर से ही तय होगा। उच्च न्यायालय न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा है कि रेवेन्यू रिकॉर्ड में सिर्फ एक एंट्री उस व्यक्ति को संपत्ति का हक नहीं मिल जाता जिसका नाम रिकॉर्ड में दर्ज है। बेंच ने कहा कि रेवेन्यू रिकॉर्ड या फिर जमाबंदी में एंट्री का केवल 'वित्तीय उद्देश्य' होता है जैसे, भू-राजस्व का भुगतान। ऐसी एंट्री के आधार पर संपत्ति पर कोई मालिकाना हक नहीं मिल जाता है। READ ALSO :General Insurance India Bharti : जनरल इंश्योरेंस इंडिया में इतने पदों पर भर्ती का नोटिफिकेशन, चेक करनें पूरी डिटेल

म्यूटेशन का मतलब प्रोपर्टी का हस्तांतरण: 

हाउसिंग डॉट कॉम के सीएफओ विकास बधावन का कहना है कि किसी संपत्ति या जमीन का म्यूटेशन दिखाता है कि एक संपत्ति को एक व्यक्ति से किसी दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरित किया गया है। ये करदाताओं की जिम्मेदारी तय करने में भी अधिकारियों की मदद करता है। इससे किसी को मालिकाना हक नहीं मिलता। 'दाखिल-खारिज' के नाम से लोकप्रिय, यह प्रक्रिया एक राज्य से दूसरे राज्य में अगल अलग है। दाखिल खारिज एक बार में पूरा होने वाला काम नहीं है। इसे समय समय पर अपडेट करने की आवश्यकता है।

पैतृक संपत्ति के लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किया ये फैसला:

सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक संपत्ति से जुड़े एक अन्य मामले में 54 साल पहले दायर एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि पारिवारिक कर्ज चुकाने या कानूनी जरूरतों के लिए यदि परिवार का कर्ता यानी मुखिया पैतृक संपत्ति बेचता है तो पुत्र या फिर अन्य हिस्सेदार उसे कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार ये सिद्ध हो गया कि पिता ने कानूनी जरूरतों के लिए संपत्ति बेची है तो हिस्सेदार इसे अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। इस ममाले में पुत्र की ओर से 1964 में अपने पिता के खिलाफ याचिका लगाई थी। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने तक पिता और पुत्र दोनों इस दुनिया में नहीं रहे। लेकिन दोनों के उत्तराधिकारियों ने इस मामले को जारी रखा।

इन कागजात की होगी जरूत :

प्रोपर्टी से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर नजर रखना बेहद जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि किसी भी तरह का विवाद होने से पहले व्यक्ति को म्यूटेशन में नाम भी बदल लेना चाहिए। इस फैसले से उन लोगों को राहत मिलेगी, जिन्हें म्यूटेशन में तुरंत अपना नाम नहीं बदला है, लेकिन यह उचित नहीं है और इससे संपत्ति विवाद समय लग सकता है। READ MORE :Rinku Singh: रिेंकू सिंह ने अब तक टीम इंडिया के लिए खेलते हुए जो खेल दिखाया है वो काबिले तारिफ

कानून में है ये प्रावधान :

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम सप्रे( AM Sapre) और एसके कौल की पीठ ने कहा कि हिंदू कानून के अनुच्छेद 254 में पिता द्वारा संपत्ति बेचने के बारे में प्रावधान है। अनुच्छेद 254 (2) में प्रावधान है कि कर्ता यानी परिवार का मुखिया चल/अचल पैतृक संपत्ति को बेच सकता है। वो पुत्र और पौत्र के हिस्से को कर्ज चुकाने के लिए बेच सकता है लेकिन ये कर्ज भी पैतृक ही होना चाहिए। यह कर्ज किसी अनैतिक और अवैध कार्य के जरिए पैदा न हुआ हो।

मकान मालिकों के लिए है ये अधिकार :

किसी भी परिवार का सबसे वरिष्ठ पुरुष कर्ता होता है। अगर सबसे वरिष्ठ पुरुष की मौत हो जाती है तो उसके बाद जो सबसे सीनियर होता है वो अपने आप कर्ता बन जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में इसे वसीयत द्वारा घोषित किया जाता है। जैसा कि हमने बताया कि कुछ मामलों में ये जन्म सिद्ध अधिकार नहीं रह जाता है। ऐसा तब होता है जब मौजूदा कर्ता यानी परिवार का मुखिया अपने बाद किसी और को खुद से ही कर्ता के लिए नॉमिनेट कर देता है। ऐसा वो अपनी वसीयत में कर सकता है। इसके अलावा अगर परिवार चाहे तो वो सर्वसम्मति किसी एक को कर्ता घोषित कर सकता है। कई बार कोर्ट भी किसी हिंदू कानून के आधार पर कर्ता नियुक्त करता है। लेकिन, ऐसे बहुत कम मामलों में होता है।

इस स्थिति में बेची जा सकती है पैतृत संपत्ति:

पैतृक कर्ज चुकाने के लिए प्रापर्टी बेची जा सकती है। जब प्रोपर्टी पर सरकारी देनदारी हो, इस स्थित में संपत्ति बेची जा सकती है। परिवार के सदस्यों के भरण-पोषण के लिए संपत्ति बेची जा सकती है। पुत्र, पुत्रियों के विवाह, परिवार के समारोह या अंतिम संस्कार के लिए बेची का अधिकार है। प्रोपर्टी पर चल रहे मुकदमे के खर्चे के लिए बेची जा सकती है। संयुक्त परिवार के मुखिया के खिलाफ गंभीर मुकदमे में उसके बचाव के लिए संपत्ति बेची जा सकती है।