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National Dairy Research Institute : तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय डेरी मेले का हुआ शुरू

 
National Dairy Research Institute : तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय डेरी मेले का हुआ शुरू
Latest News : दोस्तों जैसा की आप जानते हैं भातृअनूप राष्‍ट्रीय डेयरी अनुसंधान( Bhatranoop National Dairy Research) में तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय डेरी मेले का शुभारंभ हो चुका है। Dainik Haryana News :National Dairy Research Institute : इस अवसर पर एनडीआरआई के निदेशक एवं कुलपति, डा. धीर सिंह ने बताया कि एनडीआरआई के वैज्ञानिकों( NDRI scientists) ने संस्थान की स्थापना के 100 वर्षों की अवधि में 150 प्रौद्योगिकियों का विकास किया है जिनमें से 46 को पेटेंट के लिए दाखिल किया गया है। इनमें से 36 प्रौद्योगिकियों को पेटेंट भी प्राप्‍त हो चुका है। इसके अलावा 86 प्रौद्योगिकियों का वाणिज्यिकरण भी किया गया है। उन्‍होंने बताया कि राष्‍ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्‍थान( National Dairy Research Institute) द्वारा प्रत्‍येक वर्ष आयोजित किया जाने वाला राष्‍ट्रीय डेरी मेला किसानों एवं पशुपालकों के लिए अनेक कारणों से बहुपयोगी होता है। इस मेले का मुख्‍य आकर्षण स्‍वरूपा नाम क्‍लोन्‍ड भैंस है जिसको देखकर हरियाणा, पंजाब, उत्‍तर प्रदेश, राज्‍यस्‍थान आदि राज्‍यों से आए हजारों किसान एंव पशुपालक आनंदित एवं आश्‍चर्यचकित हैं। डा. धीर सिंह ने आगे बताया कि इस मेला में 200 से अधिक स्‍टॉल लगाए गए हैं जिसमें 100 से अधिक स्‍टॉलों पर उद्योग जगत के उद्यमी, स्‍टार्टअप्‍स, स्‍वयं सहायता समूह, बैंक, डेरी विज्ञान से संबंधित अनेक संस्‍थानों के अन्‍य के स्‍टॉल लगे हुए है। इसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के 15 स्‍टॉल भी मेला का आकर्षण में जो अपनी नवीनतम प्रौद्योगिकियों एवं तकनीकियों के द्वारा किसानों को लाभ पहुंचा रहे है। सीमित जल एवं जमीन को ध्‍यान में रखते हुए हमें उन्‍नत नस्‍ल की गाय चाहिए जिनकी उत्‍पादकता अधिक हो और वो वर्तमान वातावरण को सहन करने वाली हो। उपरोक्‍त परिपेक्ष में किसान भाइयों एवं पशुपालकों को देशी नस्‍ल की गायों का संर्वधन करने की आवश्‍यकता है। उन्‍होंने आगे बताया कि सन् 1950 में देश की आबादी 35 करोड़ थी जो आज बढ़कर 140 करोड़ हो गई है जबकि दूध उत्‍पादन में हमने 12 गुणा प्रगति की है। स्‍वतंत्रता प्राप्ति के समय गाय-भैंसों की संख्‍या लगभग 20 करोड़ थी जो अब बढ़कर 30 करोड़ हो गई है। ऐसा बेहतर पोषण, रोगों का प्रबंधन, नवीनतम तकनीकियों के इस्‍तेमाल किए जाने के कारण हुआ है। अत: देश के किसान भाई एवं पशुपालकों को दुग्‍ध उत्‍पादन के क्षेत्र में वैज्ञानिक तौर तरीके अपनाने की आवश्‍यकता है। डा. अरूण कुमार तोमर( Dr. Arun Kumar Tomar), निदेशक ने समेकित कृषि अपनाने की सलाह देते हुए कहा कि किसान एवं पशुपालकों ने कोरोना काल में बताया है कि वो अभी भी भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के रीढ़ हैं। डा. उधम सिंह गौतम, उप महानिदेशक ( agricultural extension), आईसीएआर(ICAR), नई दिल्‍ली ने विशिष्‍ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बताया कि भारत में वर्तमान समय में 731 कृषि विज्ञान केन्‍द्र हैं जिनके माध्‍यम से सरकार कृषि क्षेत्र की नवीनतम प्रौद्योगिकियों एवं तकनीकियों को किसानों के दरवाजे तक पहुंचाने का अथक प्रयास कर रही है। इस अवसर पर एक डेरी स्‍मारिका तथा संस्‍थान की राजभाषा गृह पत्रिका ‘’दुग्‍ध गंगा’’ का भी विमोचन किया गया।उद्घाटन अवसर पर डा. ए.के.सिंह, संयुक्‍त निदेशक (शैक्षणिक) एवं डा. गोपाल सांखला आयोजन सचिव भी मंच पर मौजूद रहे।