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Rani Lakshmi Bai: रानी लक्ष्मीबाई के बाद क्या हुआ उनके बेटे दामोदर का

 
Rani Lakshmi Bai: रानी लक्ष्मीबाई के बाद क्या हुआ उनके बेटे दामोदर का
Jhansi: झांसी नरेश और उनके बेटे के मरने के बाद अंग्रेजों ने झांसी पर अपना हक जताना शुरू कर दिया। अंग्रेजी सरकार ने दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से मना कर दिया और झांसी को अपने अधिन करने के लिए कहा। अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई की महिने की पेंसन देने की बात कही और दामोदर का झांसी के खजाने पर पुरा हक होगा लेकिन वो उत्तराधिकारी नहीं होगा। Dainik Haryana News: #Damodar Rao(ब्यूरो): अंग्रेजी सरकार के पास जो झांसी के 7 लाख रूपये हैं वो भी दामोदर को बड़े होने पर दे दिए जाएंगे। लेकिन रानी लक्ष्मीबाई को यह सब स्वीकार नहीं था। रानी लक्ष्मीबाई ने साफ शब्दों में मना कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई लगातार अंग्रेजों से लड़ती रही। उनसे कांपती थी पुरी अंग्रेजी सरकार। किसी की हिम्मत नहीं थी मां साहेब के सामने आने की। लेकिन 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई को वीरगति को प्राप्त हुई। इसके बाद उनके 65 लोग ही वफादार बच्चे थे। अब वो दामोदर को अपने साथ लेकर निकल पड़े। रानी लक्ष्मीबाई ने पुरा युद्ध दामोदर को अपनी पीठ पर बांधे रखा था। किसी भी गांव में उनको पनाहा नहीं मिली। दामोदर और उनके साथियों को जंगल में ही रहना पड़ा। Read Also: AC वाली गाड़ियों को लेकर परिवहन मंत्री ने लागू किया गया कानून, आप भी जानें ना कुछ खाने को ना कुछ पिने को। जंगल के फल ही उनका भोजन थे। बारिश के दिनों में दिक्कत आती थी। जैसे तेसे करके एक गांव में मुखिया के यहाँ पनहा मिली लेकिन हर रोज उनको 500 रूपये देने पड़ते थे और कुछ घोड़े तथा ऊंटों से समझौता हुआ। कुछ दिनों बाद उनके पैसे खत्म हो गए जो 60000 वो अपने साथ लेकर निकले थे। बिना पैसों के वहां से दामोदर और उनके साथियों को निकलने की नौबत आ गई। इस बीच दामोदर बिमार हो गया। बड़ी मुश्किल से वैध को बुलाया गया। दामोदर ठीक तो हो गया लेकिन दर-दर की ठोकर खाने पर मजबुर हो गया। इस बीच उनको रानी लक्ष्मीबाई की अंतिम निशानी उनके 32 तोले के आभूषण को भी देना पड़ा। 200 रूपये देकर 3 घोड़े लेकर वो वहां से निकल पड़े। ग्वालियर के शिपरी गांव में बागी समझ उन्हे बंधी बना लिया गया। 3 दिन तक वो बंदी बने रहे। उनके ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया। Read Also: Today Weather In Rajasthan : एक बार फिर मौसम ने ली करवट, इन जिलों में भारी बारिश का अलर्ट इसके बाद नन्हे खान जो रानी लक्ष्मीबाई का वफादार था। अंग्रेजी अफसर मिस्टर फलिंक से बात की वो एक दयालु अधिकारी थे। इस समय दामोदर 9 से 10साल के हो चुके थे। नन्हे खान ने कहा की एक बच्चा भला क्या नुकसान कर सकता है। फलिंक ने दामोदर की पैरवी सरकार से की। और 5 मई 1860 को अंग्रेजी सरकार ने दामोदर की 10 हजार सालान पैंसन बांध दी। दामोदर का पालन उनके पिता की दुसरी पत्नी ने की। इसके बाद भी अंग्रेजों ने दामोदर पर अपनी पैनी नजर रखी। दामोदर का पुरा जीवन कष्टों से भरा रहा। उनकी दुसरी मां ने दामोदर की शादी करवा दी लेकिन कुछ ही समय बितने के बाद उनकी पत्नी भगवान को पयारी हो गई। इसके बाद दामोदर की दूसरी शादी हुई और लक्ष्मण राव ने जन्म लिया। Read Also: केंद्र सरकार महिलाओं को दे रही Jio Mobile, दो साल तक नहीं कराना होगा कोई रिचार्ज अंग्रेजी सरकार ने दामोदर को उनके सारे हक और 7 लाख रूपये देने से मना कर दिया। उनका और उनके पूरे परिवार का जीवन संघर्ष में ही बीत गया। दामोदर ने 28 मई 1906 को इस दूनिया को अलविदा कह दिया। आज भी उनका परिवार इंदौर मे रहता है तथा अपने नाम के पिछे झांसी वाले लगाते हैं। जिन लोगों ने अंग्रेजों की चाटुकारिता की वो पैसे वाले बने और रानी लक्ष्मीबाई जैसी महान विरांगना जिसने अपने देश के लिए सब कुछ खो दिया उनके परिवार को बततर जिंदगी जीनी पड़ी