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Acharya Chanakya Niti:इन गुणों वाली लड़की से कभी ना करें शादी, जिंदगी हो जाएगी खराब

Acharya Chanakya Niti For Marrige : आचार्य चाणक्य अपने नीति शास्त्र में कई ऐसी अच्छी बातें और नीतियां बताई हैं जो आज के समाज के लिए दर्पण और उपयोगी है। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में बड़ों, बुजुर्गो, बच्चों सभीके लिए कोई न कोई सीख दी है। जिस को  अपनाकर हर व्यक्ति अपने जीवन को बहुत ही अच्छे से संवार सकता है। आज हम आपको आचार्य चाणक्य की वे अच्छी बातें बताएंगे जिनका पालन कर आप भी अपने घर को सुख-समृद्धि से भर सकते है आइए जानते हैं इन बातों के बारे में।

 
Acharya Chanakya Niti:इन गुणों वाली लड़की से कभी ना करें शादी, जिंदगी हो जाएगी खराब


Dainik Haryana News,Acharya ChanakyaTips(New Delhi): आचार्य चाणक्य की नीति भले ही कठोर क्यों को न हो लेकिन उनमें जीवन की सचाईयां छुपी हुई हैं। आचार्य चाणक्य नीति में अनुसार शादी को लेकर पुरूष के साथ-साथ स्त्री पक्ष को भी सर्तक रहना चाहिए और काफी विचार विमर्श के बाद ही कोई अंतिम फैसला करना चाहिए। 

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शादी को लेकर आचार्य चाणक्य की बड़ी बातें आचार्य चाणक्य(Acharya Chanakya) ने अपने स्तक चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के 14 वें श्लोक में लिखा है कि बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह श्रेष्ठ कुल में उत्पन्न हुई कुरूप अर्थात 
सौंदर्यहीन कन्या से भी विवाह कर ले, परन्तु नीच कुल में उत्पन्न हुई सुंदर कन्या से विवाह न करे। वैसे भी विवाह अपने समान कुल में ही करना चाहिए।

आचार्य चाणक्य(Chanakya Tips) का कहना है कि शादी-विवाह के लिए लोग सुंदर कन्या देखने के चक्कर में कन्या गुण और उसके कुल की अनदेखी कर देते हैं। ऐसी कन्या से विवाह करना सदा ही दुखदायी होता है, क्योंकि नीच कुल की कन्या के संस्कार भी नीच ही होंगे। उसके सोचने, बातचीत करने या उठने-बैठने का स्तर भी निम्न होगा। जबकि उच्च और श्रेष्ठ कुल की कन्या का आचरण अपने कुल के मुताबिक होगा, भले ही वह कन्या कुरूप और सौंदर्यहीन ही क्यों न हो।

आचार्य चाणक्य के अनुसार ऊंचे कुल की कन्या अपने कामों से अपने कल का मान बढ़ाएगी, जबकि नीचे कुल की कन्या  तो अपने व्यवहार से परिवार की प्रतिष्ठा कम करेगी। वैसे भी विवाह सदा अपने समान कुल में ही करना उचित है, अपने से नीचे कुल में नहीं  यहो कुल का अर्थ है धन-संपत्ति से नहीं बल्कि परिवार के चरित्र से हैं।

चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के 16वें श्लोक के मुताबिक विष में भी यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना अच्छा होता है। अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओं में भी यदि सोना अथवा मूल्यवान वस्तु पड़ी हो तो वह भी उठा लेने के योग्य होती है। यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला अथवा गुण है तो उसे सीखने में कोई हानि नहीं। इसी प्रकार दुष्ट कुल में उत्पन्न अच्छे गुणों से युक्त स्त्री रूपी रत्न को ग्रहण कर लेना चाहिए।

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इस श्लोक में आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) गुण ग्रहण करने की बात कर रहे हैं। यदि किसी नीच व्यक्ति के पास कोई उत्तर गुण अथवा विद्या है तो वह विद्या उससे सीख लेनी चाहिए अर्थात व्यक्ति को सदैव इस बात का प्रयत्न करना चाहिए। कि जहां से उसे किसी अच्छी वस्तु की प्राप्ति हो अच्छे गुणों और कला को सीखने का अवसर प्राप्त हो तो  उसे हाथ से नहीं देना चाहिए। विष में अमृत और गंदगी में सोने से तात्पर्य नीच के पास गुण से है।