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High Court Decision :   हाईकोर्ट का नया फैसला, चेक बाउंस की इस स्थिति में नहीं लगेगा केस  
 

New Rule Check Bounce   :   आजकल लोग डिजीटल लेन देन ज्यादा करते है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो चेक के जरिए लेन देन करते हैं। कई बार छोटी की गलती की वजह से चेक बांउस हो जाता है। हाईकोर्ट ने चेक बांउस के मामलें पर सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है। आइए जानते है इसके बारे में विस्तार से

 
High Court Decision :   हाईकोर्ट का नया फैसला, चेक बाउंस की इस स्थिति में नहीं लगेगा केस  

Dainik Haryana News, High Court Decision On Check Bounce (New Delhi)   :   आज के समय में लोग भले ही फोन पे, गूगल पे और यूपीआई आईडी का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है। लेकिन आज भी ज्यादातर लोग चेक के जरिए लेन देन करना पंसद करते हैं और चेक के जरिए पेमेंट करना सेफ भी माना जाता है। लेकिन कई बार आपकी छोटी की गलती की वजह से बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाती है। चेक बाउंस के मामले में भले ही नोटिस सही पते पर भेजा हो लेकिन उसकी तामिली सही तरीके से नहीं हुई है तो केस नहीं चलेगा। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए 2 साल से जिला कोर्ट में चेक बाउंस के चार मामलों में चल रही कार्रवाई को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने माना कि कानूनन यह अवधारणा नहीं की जा सकती कि नोटिस सही पते पर भेजा है तो आरोपित को मिल ही जाएगा।

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जानिए क्या है पूरा मामला 

इंदौर के सचिन दूबे ने किशोर शर्मा से साढ़े पांच लाख रूपये ऋण लिया था। इस रकम का दुबे ने भुगतान तो कर दिया लेकिन रसीद नहीं ली और न ही गारंटी के बतौर दिए गए चेक वापस लिए। शर्मा ने सचिन दुबे के खिलाफ जिला कोर्ट में चेक बाउंस (Check Bounce Rule) के चार मामलों में परिवाद दायर किया। इस पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने सचिन दुबे के खिलाफ 2016 में धारा 138 के तहत केस दर्ज कर लिया। 


इसलिए दर्ज नहीं हुआ अपराध

सचिन दुबे ने जिला कोर्ट केस दर्ज करने के आदेश के खिलाफ एडवोकेट राघवेंद्र रघुवंशी के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इसमें तर्क रखा कि परिवाद द्वारा  अभियुक्त को दिए गए नोटिस की पर्याप्त तामिली नहीं हुई है। पोस्टमैन ने सिर्फ यह टीप लिखी है कि अभियुक्त के घर पर सूचना दे दी गई थी। नोटिस ही तामिल नहीं हुआ तो अपराध दर्ज नहीं किया जा सकता।

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कोर्ट ने निरस्त किसा केस

कोर्ट ने यह माना कि एक तो नोटिस की विधिवत तामिली नहीं हुई थी और दूसरा यह कि बैंक ने चेक रिटर्न मेमो पर लिखा है कि 'काइंडली कांटेक्ट ड्रावर बैंक, प्लीज प्रजेंट एगेन' इसे चेक अनादरण का आधार नहीं माना जा सकता। एडवोकेट रघुवंशी ने बताया कि हाई कोर्ट ने चेक अनादरण के चारों मामलों में जिला कोर्ट में दो साल से चल रही कार्रवाई को निरस्त कर दिया।