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उत्तर प्रदेश की इस लड़की को DSP की नौकरी के साथ 4 करोड़ रूपये की सौगात 
 

UP News : पारूल ने इस प्र्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला थी जिसे उड़नपरी और गोल्डन गर्ल के नाम से जाना जाता है। पारूल का जीवन संघर्ष भरा रहा है, वह मेरठ में रहने वाली एक साधार से किसान की बेटी है जिसने अपनी बड़ी बहन प्रीति के साथ खेलना शुरू किया था।
 
उत्तर प्रदेश की इस लड़की को DSP की नौकरी के साथ 4 करोड़ रूपये की सौगात 

Dainik Haryana News,UP Latest News(नई दिल्ली): योगी सरकार ने खिलाड़ियों को बड़ी सौगात दी है। 7 खिलाड़ी अधिकारी बन गए है इनमें से 4 खिलाड़ियों को डीएसपी के लिए नियुक्त किया गया है। उत्तर प्रदेश में 189 खिलाड़ियों को 62 करोड़ रूपये दिए गए हैं और बहुत से खिलाड़ी 75 लाख, 1.5 करोड़ और 3 करोड़ रूपये तक की राशि दी गई है। सबसे अधिक इनाम राशि साढ़े चार करोड़ रुपए मेरठ की पारुल चौधरी को मिले हैं।


पारूल बनी यूपी में DSP :

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लखनऊ के इंदिरा भवन में आयोजित कार्यक्रम में यूपी के सीएम योगी ने 4 करोड़ रूपये का चेक पारूल को दिया है। पारूल चौधरी ने एशियाई खेल में 5 हजार मीटर की दौड़ में स्वर्ण और 3 हजार मीटर स्टीपल चेज में रजत पदक जीता था। चीन में आयोजित एशियाई खेलों में पारूल ने जबरदस्त प्रदर्शन किया है और पांच हजार मीटर की दौड़ में पारूल ने इतिहास रचा था। अंति लैप में वह पारूल जापान की रिरिका हिरोनाका से पीछे चल रही थी, लेकिन जब आखिर 40 मीटर में उन्हें पछाड़कर 15 मिनट 14.75 सेकंड के समय के साथ स्वर्ण पदक जीता था। एशियाई खेलों में पारुल का यह दूसरा पदक था। इसके पहले उन्होंने महिला 3000 मीटर स्टीपलचेज में भी रजत पदक जीता था।




5 हजार मीटर दौड़ में बनाई रणनीति :

एशियाई खेल में पारूल ने पांच हजार मीटर दौड़ के लिए अलग से रणनीति बनाई थी। पहली बार वह 5वें नंबर पर रही 4 हजार मीटर की दौड़ में वह 5वें स्थान पर रही। इसके बाद पहले नंबर पर आने के लिए उसने और ज्यादा मेहनत करी और गति बढ़ानी शुरू करी। इसके बाद फिर वह 5वें से तीसरे स्थान पर पहुंची। इसके बाद अंतिम दौर में वह 15 सेकंड दूसरे स्थान पर रही। अंतिम में पारूल ने आखिरी के 9 सेकंड में अपनी गति को पूरी ताकत लगाई और स्वर्ण पदक अपने नाम किया। 

कैसा था पारूल का जीवन :

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पारूल ने इस प्र्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला थी जिसे उड़नपरी और गोल्डन गर्ल के नाम से जाना जाता है। पारूल का जीवन संघर्ष भरा रहा है, वह मेरठ में रहने वाली एक साधार से किसान की बेटी है जिसने अपनी बड़ी बहन प्रीति के साथ खेलना शुरू किया था। पिता कृष्‍णपाल सिंह के कहने पर स्‍कूल की दौड़ प्रतियोगिता प्रतिभाग कर उन्‍होंने खेल के अपने सफर की शुरुआत की। वह लम्‍बे समय तक गांव की टूटी-फूटी सड़कों पर अभ्यास करती रहीं। बाद में कोच गौरव त्यागी के कहने पर पारुल ने स्टेडियम में अभ्यास शुरू किया। बताते हैं कि प्रैक्टिस के लिए पारुल अपने पिता के साथ  सुबह पांच बजे वह मुख्य मार्ग तक पहुंचती थीं। वहां से वह टेम्पो या किसी अन्य वाहन से स्टेडियम तक जाती थीं।